आख़िरी मंज़िल



कुछ दफ़न है,
कुछ को दफ़नाने हैं,
आख़िर आख़िरी मंज़िल पर सभी को ही जाना है।

ना वक़्त गुज़रता
ना पाने बहता

ना ख़ाने की भूख
ना पानी की प्यास

ना इन्तज़ार का दर्द 
ना प्यार का सूख

ना पापा की डाँट फटकार
ना माँ का दूल्हार

ना पढ़ाई का प्रेशर
ना बॉर्ड इग्ज़ैम का स्ट्रेस

आग की लिपटो से ज़िन्दगी छोटी लगने लगी
दूसरों की गलतीं की सज़ा हमें हमारी मौत से देनी पड़ीं।

कुछ दफ़न है,
कुछ को दफ़नाने हैं,
आख़िर आख़िरी मंज़िल पर सभी को ही जाना है|


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