ज़ात बनी औक़ात

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ज़ात बन बैठी भगवान,
होगा कैसे देश का निर्माण?

छूआछूत की भिन्नता,
१०० साल से यही एक समानता |

पढेगा तो बढ़ेगा,
लगाए देश वासी नारे,
लेकिन अच्छी सोच लाने में यहाँ सभी है हारे |

उनकी आवाज़ को ज़ात दबाए, 
फिर कैसे देश जनतंत्र का इतिहास बनाए?

झाड़ू से उनकी पहचान बनायी,
ख़ुद पे कभी ना आने दे उनकी परछाईं |

कूदा कचरा सब करके साफ़,
बनाया उन्होंने देश को खास |

फिर क्यूँ है यह भेदभाव?
क्यूँ उन्हें माना जाता है नाचीज़ और अभाव?

रूको, सोचो, ग़ौर फ़रमाओ,
तुम भगवान नहीं के ऐसे पेश आओ!

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